शनिवार, 26 अगस्त 2017

कथित हिन्दू आतंकवाद के पीछे की सियासत बेपर्दा

"मिलिट्री इंटेलिजेंस निदेशालय" के प्रमुख "डायरेक्टर-जनरल" कहलाते हैं जिनका रैंक लेफ्टिनेंट-जनरल का रहता है और वे सीधे सेनाध्यक्ष को रिपोर्ट करते हैं, रक्षा या किसी भी मन्त्रालय का उनपर सीधा नियन्त्रण तो दूर सीधा सम्पर्क भी नहीं रहता |
मिलिट्री इंटेलिजेंस के डायरेक्टर-जनरल के बाद उसमें कई डायरेक्टर होते हैं, जिनमें से एक थे आर. के. श्रीवास्तव जिन्होंने लेफ्टिनेंट-कर्नल श्रीकान्त पुरोहित के साथ अवैध हरकतें की और उनको झूठे मुकदमें में फँसाया |
पिछले पोस्ट में मैंने जो तथ्य दिए हैं उन्हें उपरोक्त आलोक में देखें तो स्पष्ट है कि तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर की आज्ञा के बिना ऐसा सम्भव नहीं था | आरम्भ से ही कांग्रेस इस मामले को RSS के विरुद्ध राजनैतिक लाभ के लिए प्रयुक्त कर रही थी, अतः स्पष्ट है कि तत्कालीन सेनाध्यक्ष कांग्रेस नेतृत्व के इशारे पर ऐसा कर रहे थे | सेनाध्यक्ष को कोई राजनैतिक स्वार्थ नहीं था, उन्हें चुनाव नहीं लड़ना था और न राज्यपाल बनना था |
अतः जबतक रक्षा उपकरणों की खरीद और ऐसे मामलों की सही जाँच नहीं होती और जबतक कर्नल पुरोहित के मामले में तत्कालीन सेनाध्यक्ष को अभियुक्त नहीं बनाया जाता तबतक कांग्रेस के नेता पकड़ में नहीं आयेंगे |
अमरीका में कई जनरलों का कोर्ट मार्शल हुआ है और राष्ट्रपति तक का इम्पीचमेंट हो चुका है, लेकिन अभी तक भारत में किसी बड़े VIP पर कानूनी कार्यवाई नहीं हुई है, क्योंकि जनता को इन मामलों से अधिक आवश्यक क्रिकेट और फिल्म लगते हैं |
अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का इम्पीचमेंट इसी कारण हुआ था कि उन्होंने राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी का इस्तेमाल राजनैतिक लाभ के लिए किया था | भारत में न्यायलय CBI को सरकार का तोता तो कहती है, तोते को आज़ाद कराने के लिए कुछ नहीं करती |
मन्त्रालय के सीधे नियन्त्रण में इंटेलिजेंस ब्यूरो और RAW हैं जिनमें पच्चीस हज़ार से अधिक अफसर और कर्मी हैं, जबकि मिलिट्री इंटेलिजेंस में केवल सात सौ अफसर और तीन हज़ार से कुछ अधिक कर्मी हैं | किन्तु सेना को देश की सुरक्षा के लिए जिन प्रकार की गोपनीय सूचनाएं चाहिए उनमें इंटेलिजेंस ब्यूरो और RAW की कम रूचि रहती है क्योंकि मन्त्रालय के अधीन रहने के कारण इंटेलिजेंस ब्यूरो और RAW का अधिकतर उपयोग देश के भीतर राजनैतिक लाभ के लिए कांग्रेस करती रही है | यही कारण है कि सेना ने मिलिट्री इंटेलिजेंस पर अधिक भरोसा किया और आवश्यक खुफिया जानकारी के लिए उसे विकसित किया | किन्तु कर्नल पुरोहित का मामला सिद्ध करता है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो और RAW की तरह मिलिट्री इंटेलिजेंस को भी कांग्रेस के एक अंग की तरह इस्तेमाल किया गया जो देशहित के विरुद्ध है |
उपरोक्त काण्ड में बड़े-बड़े अफसर भी फँसेंगे, अतः भाजपा सरकार भी कोई कार्यवाई नहीं करेगी | जनता ही PIL के माध्यम से कुछ करा ले तभी दोषियों को सजा मिलेगी और मिलिट्री इंटेलिजेंस को राजनीति से मुक्ति मिलेगी | कर्नल पुरोहित के मामले में जनरल वी के सिंह के सिवा उस समय से लेकर सारे सेनाध्यक्षों की मिलीभगत रही है जिन्होंने सही रिपोर्ट को दबाये रखा और आरम्भ में ATS तथा 2011 के बाद  NIA ने गलत रिपोर्ट बनायी | जनरल वी के सिंह ने जब कोर्ट ऑफ़ इन्क्वारी ठीक से करा दी तब उनका कार्यकाल समाप्त हो गया, उसके बाद न केवल उस रिपोर्ट को दबाया गया बल्कि मामले को गलत मोड़ देने के लिए NIA के सुपुर्द कर दिया गया |
रक्षा मन्त्रालय में सेना की नहीं चलती, वरिष्ठ IAS अफसरों की लॉबी और रक्षा मन्त्री एवं प्रधानमन्त्री की चलती है | जनरल वी के सिंह के साथ रक्षा मंत्रालय ने जो किया उससे तो यही लगता था कि रक्षा मन्त्रालय तो पाकिस्तान या चीन से नहीं बल्कि भारतीय सेना से "भारत की रक्षा करने का मन्त्रालय"  है !!
जबतक IAS लॉबी से रक्षा मन्त्रालय को पूर्णतया मुक्त नहीं किया जाता तबतक मौलिक सुधार सम्भव नहीं | किन्तु हथियारों के अन्तर्राष्ट्रीय कारोबारी ऐसा होने नहीं देंगे | अमरीका पर भी इसी मिलिट्री-इंडस्ट्रियल-काम्प्लेक्स का कब्जा है | भारत में स्वदेशी मिलिट्री-इंडस्ट्रियल-काम्प्लेक्स विकसित नहीं हो पायी है, और जिस तरह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को त्यागकर आयात को प्रमुखता दी जा रही है उससे स्थिति और भी बिगड़ेगी | हथियारों के अन्तर्राष्ट्रीय कारोबारी ही युद्ध कराते हैं, ISIS, अल क़ायदा, तालिबान, सिमी, हुर्रियत, आदि को बढ़ावा देते हैं और भारत पर आतंकी हमले कराते हैं, ताकि उनके हथियार बिकते रहें | कर्नल पुरोहित जैसे अधिकारी जब इन गिरोहों के भेद जान जाते हैं तो उनको रास्ते से हटाया जाता है | दुःख की बात है कि इस देशद्रोह के कार्य में तत्कालीन रक्षामन्त्री, रक्षा सचिव और सेनाध्यक्ष से लेकर अनेक बड़े नेताओं और अफसरों का हाथ रहा है, जिनके नाम भी मुकदमें में न आ पाए उसी उद्देश्य से भाजपा सरकार ने भी कोर्ट ऑफ़ इन्क्वारी की रिपोर्ट के तीन परिशिष्ट ही अर्पणा पुरोहित को दिए, मुख्य रिपोर्ट बिलकुल नहीं दी जिसमें कई बड़े अधिकारियों के विरुद्ध सबूत हैं | सरकार का यह कहना सरासर गलत है कि पूरी रिपोर्ट अदालत को देने से देश की सुरक्षा को ख़तरा हो जाएगा | कुछ बड़े लोगों पर कार्यवाई होने से देश नष्ट हो जाएगा ? यदि देश को ख़तरा है भी तो सर्वोच्च न्यायालय को तो गुप्त रूप से दिया जा सकता है, न्यायालय तय करेगी कि क्या देशहित में है और क्या नहीं |
कुछ लोग मिलकर सर्वोच्च न्यायालय में PIL दायर करें यही एकमात्र रास्ता है |
निर्बल के विरुद्ध बलवान लोगों को न्याय का द्वार खटखटाना नहीं पड़ता | "न्याय" की मांग तब उठती है जब शक्तिशाली द्वारा निर्बल पर अत्याचार होता है |
कर्नल पुरोहित के मामले में एक भी अन्यायी पर कार्यवाई का प्रयास तक नहीं हुआ है, यह सरासर अन्याय है | प्रश्न एक व्यक्ति का नहीं है , प्रश्न यह है कि क्या सत्ता के सर्वोच्च सैन्य और असैन्य शिखरों पर बैठे कुछ लोग न्याय की प्रक्रिया से ऊपर हैं, या इस देश में क़ानून का राज सबके लिए है ?
"देश की सुरक्षा" के बहाने आजतक कितने मामलों को दबाया गया उन सबकी जाँच अदालत को करनी चाहिए, कुछ न्यायाधीशों के तहत अलग बेंच बना देना चाहिए जो ऐसे समस्त मामलों की फाइलें खुलवाये और RAW, IB MI, जैसी संस्थाओं के राजनीतिकरण को रोकने के उपाय सुझाए और लागू कराये | यह बेंच बीस-तीस वर्षों तक जाँच न करती रहे इसका भी ध्यान रखा जाय |

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